Home Articles सावधान ! डोल रहा है शेषनाग का फन !!

सावधान ! डोल रहा है शेषनाग का फन !!

by Gopal Dutt Sharma (Retired IRTS Officer)
Jun 03, 2020
सावधान ! डोल रहा है शेषनाग का फन !!, Article, KonexioNetwork.com

धरती के क्रोध से बचो…
जंगली जीवों को खाने का दुष्परिणाम है कोरोना वायरस

हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में यह बताया गया है कि पृथ्वी  शेषनाग के फ पर टिकी है, और जब धरती पर पाप और अनाचार का भार बढ़ जाता हैं, तो शेषनाग का फ डोलने लगता है, और धरती पर तरह-तरह की प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। यह एक पौराणिक परिकल्पना ही नहीं, आज के वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं, कि अब मनुष्य  द्वारा धरती के दोहन और शोषण की पराकाष्ठा हो गई है, और अब धरती पलटवार करने की मन: स्थिति में है।

भारत के  धर्म ग्रंथों में पृथ्वी के शेषनाग के फन पर टिकी होने की परिकल्पना सांकेतिक है। शेष का दूसरा नाम अनंत भी है , जिसे अंग्रेजी में ‘इनफिनिटी ‘कहते हैं। शेष का यह भी अर्थ है की जो सब कुछ समाप्त हो जाने के बाद बच रहता है वह शेष है। ब्रह्मांड के अंत के बाद भी ब्रह्मांड की शक्तियां अनंत रूप से स्थाई रहती हैं। यह वैज्ञानिक सत्य है कि पृथ्वी अनंत में अरबों खरबों खगोलीय पिंडों और नक्षत्रों के गुरुत्वाकर्षण से अपनी कक्षा में टिकी रहती है। यह सर्व विदित वैज्ञानिक सत्य है कि अनंत में से अनंत को घटाया जाता है तो अनंत ही बचता है, “पूर्णस्य पूर्ण मादाय पूर्ण मेवा वशिश्यते”। 

इस तरह शेषनाग अनंत ब्रह्मांड की प्रचंड और व्यापक शक्तियों के प्रतीक हैं, और जब इन शक्तियों में मनुष्य के हस्तक्षेप के कारण कोई बदलाव आता है तो खगोलीय बवंडर की उत्पत्ति होती है। वैज्ञानिकों का यह मानना है कि हाल ही में धरती पर बार-बार आ रहे तूफान, बवंडर, भूकंप, पृथ्वी के गर्भ में स्थित टेक्टोनिक प्लेट्स का एक्टिव होना और उनमें दरारें पैदा होना, पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुवों की स्थिति अभूतपूर्व रूप से तेजी से बदलना, ग्लोबल वार्मिंग और उसके दुष्परिणाम स्वरूप ग्लेशियरों का पिघलना और समुद्र के स्तर में वृद्धि और हर साल एक नई महामारी, जिनका कोई इलाज नहीं, इत्यादि इस बात के द्योतक हैं कि पृथ्वी पर उसके वातावरण के साथ हो रहे अनाचार और अत्याचार अब पृथ्वी की अपनी सहनशक्ति से आगे निकल रहे हैं। आज के वैज्ञानिकों का मानना है कि अब ‘धरती बचाओ का नारा’ नहीं, ‘धरती के क्रोध से बचो’, यह नारा अधिक उपयुक्त लगता है।

मनुष्य के धरती के ऊपर अत्याचार

मनुष्य के धरती के ऊपर अत्याचार की शुरुआत तो करीब 12,000 साल पहले हो गयी थी,जब मनुष्य ने शिकार और जंगल से कंदमूल फल इकट्ठे करने की जीवनशैली छोड़ कर खेती करने का  विचार किया, और उसके लिए बड़े-बड़े जंगलों में आग लगाकर और उनके अंदर रहने वाले लाखों-करोड़ों तरह के जीव जंतु, पेड़-पौधे ,कीड़े- मकोड़े और सूक्ष्मजीवियों बैक्टीरिया इत्यादि को समूल नष्ट करने की मुहिम शुरू हुई।  

कालांतर में मांस और दूध के लिए पाले वाले जाने वाले जानवरों जैसे गाय, भैंस, बकरी, सूअर, भेड़, घोड़े, ऊंट, मुर्गी इत्यादि को अन्य वन्य जीव-जंतुओं की कीमत पर करोड़ों की संख्या में बढ़ाया। कहने की आवश्यकता नहीं कि इन पालतू जानवरों ने खाने के उन सभी स्रोतों और रहने की जगह पर कब्जा कर लिया, जिन पर सभी जीवों का अधिकार था। खेती और पशुपालन शायद पृथ्वी के वातावरण पर मानव का पहला हमला था , जिसे इस क्षमाशील सहनशील धरा ने चुपचाप सहन किया।

वैज्ञानिक और औद्योगिक क्रांति ने बिगाडा़ संतुलन

परंतु आज से पांच सौ साल पहले शुरू हुई वैज्ञानिक और औद्योगिक क्रांति ने तो पृथ्वी पर मानव के जीवन को सरल बनाने के लिए और पृथ्वी पर अपनी सत्ता जमाने के लिए जो संसाधन उत्पन्न किए, उन्होंने पृथ्वी पर सभी तरह के  जीव जंतु और पेड़-पौधों के आपसी संतुलन को नष्ट भ्रष्ट कर दिया। और इस असंतुलन ने सभी तरह के जीव-जंतु, पेड़-पौधों, कीट-पतंगों और सूक्ष्मजीवियों के जीवन को क्रमशः पृथ्वी के धरातल से लुप्त करने का एक सिलसिला शुरू कर दिया। एक तरफ बड़े बड़े और घने जंगलों को काटा गया, जिससे रेलवे, सड़कें, बड़े बड़े कारखानों और औद्योगिक विकास के लिए जरूरी कच्चे माल का उत्पादन करने हेतु खेती के लिए जमीन खाली की गई, साथ ही बढ़ती हुई ऊर्जा की आवश्यकताओं ने कोयला और पेट्रोलियम उत्पादों का उपयोग बढ़ाया इससे धरती के वातावरण को विषैला और पृथ्वी पर जीवन के लिए असहनीय बना दिया। पेट्रोलियम के एक बायप्रोडक्ट प्लास्टिक ने तो प्रकृति के लिए महामारी ला दी। साथ ही औद्योगिक विकास के परिणाम स्वरूप जो उपभोक्ता संस्कृति आई, उसने प्रकृति के साथ भयंकर विनाश लीला का खेल खेला। 

सबसे बड़ा प्रजाति संहार जारी

आज धरती के इतिहास का छठा और सबसे बड़ा प्रजाति संहार जारी है ,जिसमें आशंका है कि जानवरों, पेड़ पौधों, कीडे मकोड़ों और सूक्ष्मजीवियों की करीब 30 हजार प्रजातियां हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएंगी। इसमें 500 प्रजातियां तो जमीन पर रहने वाले जानवरों की हैं। इस महा प्रजाति संहार का मुख्य कारण इन प्रजातियों के रहने के स्थान का नष्ट होना, वातावरण का बदलाव ,वातावरण का विषैला होना, मनुष्य द्वारा शिकार, अथवा अपने व्यापारिक हितों के लिए इनका दोहन ही मुख्य है। वैज्ञानिक इस महा प्रजाति संहार को सबसे गंभीर समस्या बताते हैं, जो स्वयं मनुष्य के पृथ्वी पर जीवन के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा हैं ,जो स्वयं मनुष्य ने पैदा किया है।इतने छोटे समय में इतनी ज्यादा प्रजातियों का विलुप्त के कगार पर पहुंच जाना मनुष्य के पृथ्वी के साथ किए जा रहे अनाचार का जीवंत उदाहरण है। प्रकृति में पौधे,जानवर,और सूक्ष्मजीव  आपस में एक बहुत ही जटिल  तरीके से आपस में जुड़े रहते हैं ,और एक भी प्रजाति का विनाश होना सामंजस्य और सरसता को तोड़ देता है।

जब टिटहरी के करुण विलाप से द्रवित हुए भगवान

श्रीमद्भागवत में एक और कथा है, जिसमें एक टिटहरी के करुण विलाप से द्रवित हुए भगवान विष्णु समुद्र पर क्रोधित होते हैं, क्योंकि समुद्र टिटहरी के समुद्र के किनारे की रेती में दिए हुए अंडों को बहा कर ले गया था। जब भगवान विष्णु समुद्र को दंड देने में व्यस्त थे, तभी हिरण्याक्ष (सोने की आंखों वाला- जिसे सोने के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता), भगवान विष्णु की नजर चुरा कर असहाय पृथ्वी को हरण करके पाताल लोक ले गया। क्या यह पौराणिक आख्यान आज की वास्तविक स्थिति का वर्णन नहीं करता? आज का मानव भी अपनी आंखों से सोने (अपनी स्वार्थ पूर्ति के साधनों) के अलावा कुछ नहीं देख पाता, आज का मनुष्य भी पृथ्वी का शोषण और दोहन कर रहा है,और उसने पृथ्वी को रसातल में पहुंचा दिया है! भगवान विष्णु वाराहा अवतार लेकर पाताल लोक से पृथ्वी का उद्धार करते हैं, और हिरण्याक्ष का वध करते हैं। टिटहरी के विलाप से द्रवित होने वाले भगवान विष्णु वाराह अवतार इसलिए लेते हैं कि जगत को विदित हो जाए कि पृथ्वी के असली उद्धारक पृथ्वी के जीव जंतु हैं, जो स्वार्थ से अंधे हुए मानव द्वारा किए जा रहे पृथ्वी के बलात्कारी विध्वंस से पृथ्वी को उबारेंगे। और शायद इस प्रक्रिया में हिरण्याक्ष मानव का भी विनाश अवश्यंभावी हो।

प्रकृति से खिलवाड़़ का परिणाम है ग्लोबल वार्मिंग

हमारी पृथ्वी एक बहुत ही जटिल इको सिस्टम है, जो अत्यंत ही नाजुक भी है। और इसमें थोड़ा सा भी विपरीत बदलाव इस पर रहने वाले जीव जंतुओं पेड़ पौधों और सूक्ष्म जीवों बहुत बड़ा प्रभाव डालता है,और बहुत सी प्रजातियां हमेशा के लिए नष्ट हो जाती हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पृथ्वी पर हुए यह बदलाव एक तरफा होते हैं, और कभी भी सुधारे नहीं जा सकते।और इस तरह  जानवर और पेड़-पौधों ,कीड़े मकोड़ों, और अनंत प्रकार के सूक्ष्म जीवों,इत्यादि की प्रजातियां हमेशा के लिए लुप्त हो जाती है।

तो क्या पृथ्वी द्वारा किए गए सभी अनाचार चुपचाप सह लेती है? नहीं! वैज्ञानिक कहते हैं नहीं ! पृथ्वी अपने पिछले 12,000 साल में बहुत बदली है। और इसमें इस तरह के बदलाव आ रहे हैं, जो मानव के अस्तित्व के लिए पृथ्वी के वातावरण और उस पर होने वाले प्रभाव इसके द्योतक हैं।

महाद्वीपों के बदलते हुए मौसम, जिससे प्रतिवर्ष सूखा और बाढ़ जैसी घटनाएं देखने को मिलते हैं, ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिघलते हुए ग्लेशियर, पृथ्वी के ध्रुवों की स्थिति में तीव्र गति से बदलाव, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव,समुद्रों में बहने वाली गर्म पानी की धाराओं के मार्ग परिवर्तन, पृथ्वी के वातावरण को सूर्य की घातक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने वाली ओजोन लेयर  में छिद्र, डूबते हुए द्वीप और महाद्वीपों के किनारे बसे शहर, तूफान ,बवंडर , भूकंप और पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट्स के अनियमित टकराव और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रों में निरंतर आते बदलाव के कारण उत्पन्न हुए सौर बवंडर, एक अनिश्चित और डरावने भविष्य की ओर इंगित करते हैं। पृथ्वी पर मनुष्य के कार्यकलापों के फल स्वरुप पृथ्वी के वातावरण में इतने अधिक और बड़े प्रभाव हो रहे हैं कि वह धरती पर रहने वाले अरबों खरबों वर्षों से फल फूल रहे जीवन के लिए संकट पैदा कर रहे हैं। और अब धरती एक क्षमाशील माता नहीं ,बल्कि मनुष्य द्वारा किए जा रहे उसके वातावरण में छोटी सी छेड़छाड़ के लिए पूरी ताकत से पलट कर वार करने वाली है। आखिर पृथ्वी को उजाड़ने वाले मानव पर पृथ्वी पलटवार कैसे करती है? जब कोई प्रजाती नष्ट होती है तो उस प्रजाति पर पलने वाले परजीवी जिनमें बैक्टीरिया वायरस और अन्य सूक्ष्मजीव भी होते हैं उन्हें नए होस्ट की जरूरत होती है और वह अपने आप में परिवर्तन करके मनुष्य के अंदर अपना होस्ट ढूंढ लेते हैं। अन्य प्रजातियां जो इन बीमारियों को नियंत्रण में रखने का काम करती थी उनके नष्ट हो जाने से यह परजीवी पूरी स्वतंत्रता के साथ महामारी फैलाने में सक्षम होते हैं। इसका तात्कालिक उदाहरण हम सबके सामने हैं।

जंगली जीवों को खाने से पैदा हो रहे वायरस

जिन जंगली जीवों को जिन्हें वनों में निर्भय घूमना चाहिए था, उन्हें बड़े पैमाने पर खाने के लिए इस्तेमाल करने से उन जंगली जानवरों में पनप रहे वायरसों को अपना नया होस्ट ढूंढना ही था, और वह होस्ट सभी जगह बहुतायत में मिलने वाले मनुष्य से बेहतर कौन होता? परिणाम स्वरूप एचआईवी, इबोला, चिकन फ्लू ,स्वाइन फ्लू ,सार्स जैसी भयानक महामारियों ने जन्म लिया, और करोड़ों लोगों की आहुति ली। और अब कोरोनावायरस, जो चीन के वेट मार्केट से निकला है, जो पैंगोलिन जैसे ठेठ जंगली जानवर से मनुष्य में आया आज पूरी मानव सृष्टि कोरोनावायरस के कारण अस्तित्व के संकट में है। इससे बढ़कर पृथ्वी के पलटवार का और क्या उदाहरण हो सकता है?

इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि हमारी धरती प्रचंड शक्तिशाली है ,और मनुष्य द्वारा बनाई गई कोई भी शक्ति, चाहे वह परमाणु बम हो, या न्यूक्लियर बम, पृथ्वी की शक्ति का लेश मात्र मुकाबला नहीं कर सकती। एक छोटे से भूकंप में अरबों न्यूक्लियर बम जितनी ताकत होती है। पृथ्वी की बदला लेने की शक्ति का अहसास मनुष्य को अच्छी तरह है।

आज आवश्यकता है टिटहरी के अंडों की चोरी पर हुए उसके विलाप पर द्रवित होने की। टिटहरी के अंडों को चुराने वाले को कड़ी सजा देने की, चाहे वह समुद्र जितना शक्तिशाली भी क्यों न हो। पृथ्वी को सोने की स्वार्थ भरी आंखों से देखने वालों के द्वारा अपहरण और बलात्कार से बचाने की, और वाराह अवतार की तरह पृथ्वी को रसातल से उबारने की।