गलत रूप में समझा गया कर्म सिद्धांत
चाइना के पाप कर्म का दुष्परिणाम है कोरोना महामारी
**हिंदू धर्म का मूल सिद्धांत, जो हिंदू धर्म की आत्मा है, वह है कर्म का सिद्धांत ।*
कर्म का सिद्धांत हिंदू धर्म से निकले सभी अन्य धर्म जैसे बौद्ध, जैन और सिख धर्मों में भी प्रधान है। कर्म के सिद्धांत के अनुसार किसी भी व्यक्ति का जन्म, जीवन और अस्तित्व, उस व्यक्ति द्वारा जन्म जन्मांतर में किए गए अच्छे- बुरे कार्यों के प्रभाव का परिणाम है।
कर्म के सिद्धांत के अनुसार हमारे अच्छे या बुरे कार्य हमारे आगे आने वाले जन्म को तो प्रभावित करते ही हैं, साथ ही इस जन्म में हमारा क्या चरित्र और व्यवहार होगा, यह भी तय करते हैं। केवल हमारे द्वारा किए गए अच्छे या बुरे कार्य ही हमारे कर्म प्रभाव में नहीं जोड़ते या जुड़ते हैं बल्कि वे कार्य जो हमको करने चाहिए थे, परंतु नहीं किए, वह भी हमारे कर्म में जुड़ जाते हैं।
गलत काम होते देखना भी पाप कर्म
महाभारत में कहा गया है कि यदि हम कोई गलत काम होते हुए देखते हैं अथवा उसकी जानकारी रखते हैं और उसको रोकने या उस व्यक्ति को सजा दिलाने के लिए कोई उपाय नहीं करते हैं तो आप *उस पाप कर्म में शामिल* हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। साथ ही एक व्यक्ति के अच्छे या बुरे कार्य का परिणाम केवल उस व्यक्ति को ही नहीं भुगतना होता। बल्कि पूरे समाज अथवा मानव जाति और सृष्टि को भी भुगतना पड़ सकता है।
आज के संदर्भ में इसका स्पष्ट उदाहरण मौजूदा कोरोना महामारी का इस संकट है. चाइना के पाप कर्म की सजा पूरी मानव जाति को भुगतनी पड़ रही है. हर जीव जंतु की हत्या कर उसे खा जाने वाले कलयुगी राक्षस चीन की बनाई हुई वस्तुओं का उपभोग कर पूरी दुनिया वर्षों से चीन के पाप कर्म में भागीदार बन रही थीं. उसी का दुष्परिणाम है कि पूरी दुनिया को उसकी सजा भुगतनी पड़ रही है।
व्यक्ति के कार्यों का प्रभाव होता है पूरे समाज पर
*व्यक्ति द्वारा किए गए कार्यों का प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है और समाज द्वारा किए गए कार्यों का परिणाम व्यक्ति को भुगतना पड़ता है। यहां पर मैं स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण लेता हूं। जब हम एक बहुत छोटे अबोध बच्चे को कैंसर जैसी बीमारी से ग्रस्त देखकर उसे कष्ट उठाते हुए देखते हैं, तो यह कहना बिल्कुल गलत होगा कि वह बच्चा अपने पूर्व जन्म में किए गए कार्यों के कारण इस जन्म में कैंसर से ग्रस्त हुआ। परन्तु यह कहना सही होगा कि पूरी मानव जाति और समाज के द्वारा अपने कार्यों के द्वारा ऐसे हालात पैदा किए, जिसके कारण छोटे बच्चे को उसका स्वयं का कर्म प्रभाव न होते हुए भी कैंसर से ग्रस्त होना पड़ा।
जीवन में सुधरने का मिलता है अवसर
"हमारा इस जन्म का कार्य और व्यवहार भी हमारे पूर्व जन्मों के कार्मिक कर्मों के सम्मिलित प्रभाव का परिणाम है यही इस बात का द्योतक भी है कि दुनिया में बुराइयां क्यों हैं। बुराइयों से परिपूर्ण कर्म प्रभाव बुराई को ही जन्म देता है ।"
परंतु हिंदू धर्म में बुरे कर्म प्रभाव को अच्छे कर्म प्रभाव में वर्तमान जीवन में ही सुधार लेने का अवसर मिलता है। इसीलिए मानव जीवन को श्रेष्ठ कहा जाता है क्योंकि मनुष्य अपने ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग और जो व्यक्ति अपने आप को निरंतर अपने कार्य व्यवहार को निरीक्षण करता हुआ सदैव ऊपर उठने की कोशिश करता है और सब कार्यों के द्वारा अपने जीवन को उन्नत बनाता है, वह अपने बुरे कर्म प्रभाव को मिटाने में सफल होता है. शास्त्रों में ऐसे उदाहरण मिलते हैं- जैसे महर्षि वाल्मीकि, जो एक व्याध की तरह जीवों की हत्या करके जीवन यापन करते थे, किंतु अपने ही जीवन में उन्होंने अपने आप को इतना ऊंचा उठाया कि उन्हें ईश्वर का साक्षात्कार प्राप्त हुआ।
दिमाग ही मनुष्य का शत्रु और दिमाग ही मित्र
गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि ```"**उधरेदात्मनात्मानम् नात्मानम् अवसादयेत्। आत्मैवह्यात्मनो
बंधुरात्मैवरिपुरात्मनः।"*```*
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि मनुष्य अपने दिमाग से प्रेरणा लेता हुआ सतत अपने को ऊपर उठाता रहे और कभी अपने को नीचे ना गिरने दे ।मनुष्य का दिमाग ही उसका सबसे बड़ा मित्र है और उसका दिमाग ही उसका सबसे बड़ा शत्रु हो सकता है ।
यदि मनुष्य का दिमाग उसकी दैविक, आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति में निरंतर उसकी मदद करे, तो वह दिमाग मनुष्य का मित्र होता है ,और यदि वह उसको अवनति की ओर ले जाए, तो वह उसका सबसे बड़ा दुश्मन है। अतः यहां पर स्पष्ट है कि मनुष्य अपने विवेक बुद्धि के द्वारा यदि लगातार अपने को ऊपर उठाने का यत्न करता रहे, तो वह अपने पिछले जन्म और पिछले समय में किए हुए बुरे कर्म प्रभाव को समाप्त करके दैहिक दैविक और आध्यात्मिक उच्चता को प्राप्त कर सकता है ।
अतः कर्म वह नहीं है जो हमारा पिछले जन्म में किए गए कामों का समुच्चय परिणाम है बल्कि इस जन्म में किए गए *पल प्रतिपल हमारे विचार हमारी सोच और हमारे कार्यों,और अकर्मन्यताओं का समुच्चय ही हमारे भविष्य का निर्धारण करता है ।*
इसी कारण देश सदियों रहा गुलाम
लिया गया है और यह मान लिया गया कि हमारी आज की जो भी स्थिति है उसके लिए हमारे पूर्व जन्म के कर्म जिम्मेदार हैं। इसके कारण सदियों से भारतीय अकर्मण्य होते गए और उन्होंने विदेशी आक्रांताओं के सामने भी कभी एकजुट होकर मुकाबला नहीं किया, यह सोच कर कि हमारे भाग्य में यही जन्म जन्मान्तर का लेखा है, हमारे कर्म में यही है कि हम विदेशी अत्याचार सहते रहें और उनके अधीन शासित हो और उसे बदला नहीं जा सकता। इसी से हमारा देश हजारों साल गुलाम रहा।
दूसरे, कर्म सिद्धांत की गलत धारणा के कारण, कमजोर, गरीब और दलित वर्ग को दारिद्र्य और लानत भरी जिंदगी से बाहर निकलने और अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने की प्रेरणा नहीं मिल सकी। इस वर्ग के मानस मैं यह धारणा कूट कूट कर भर दी गई कि उनकी वर्तमान हालत उनके पूर्व जन्म के कर्मों के कारण है , और उसे सुधारा नहीं जा सकता। अत: यह वर्ग अपने को अपनी हालत के लिए अपने पूर्व जन्म के संस्कारों और कर्मों को ही जिम्मेदार मानता रहा, जबकि वास्तविक कर्म सिद्धांत के अनुसार कोई भी व्यक्ति इसी जन्म में जीते जी अपने कर्म प्रभाव को सुधार सकता है। अपने अच्छे कामों, अच्छी सोच और अच्छी बुद्धि के द्वारा, जैसा कि गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है "अपने दिमाग को अपना मित्र बनाओ और निरंतर अपने दिमाग से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ते रहो!" हमारे धर्म ग्रंथों में ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जहां बहुत निचले स्तर से उठकर लोगों ने परमार्थ को प्राप्त किया और परमात्मा को प्राप्त किया। महर्षि वाल्मीकि इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं।
अत: अपने कर्मों को मत कोसो, पुरुषार्थी बनो, और आगे बढ़ो ।अत्याचार सहन मत करो, चुप मत रहो , अपनी आवाज बुलंद करो, चुप रहना और अत्याचार सहना पाप कर्म में सहभागी होना है।